LIC के ब्रांड बनने की कहानी:5 करोड़ रुपए की सरकारी रकम से शुरू हुई कंपनी,

      
     LIC के ब्रांड बनने की कहानी:5 करोड़ रुपए की सरकारी रकम से शुरू हुई कंपनी, अब तक सरकार को दे चुकी है 23 लाख करोड़.

कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की दस्तक हो चुकी है। शेयर बाजार में गिरावट का रुख है। Paytm और स्टार हेल्थ जैसी इंश्योरेंस कंपनियों के IPO पिट गए हैं। इसके बावजूद भारतीय जीवन बीमा निगम, यानी LIC, जनवरी से मार्च के बीच में देश का सबसे बड़ा IPO ला रही है। इससे LIC के पॉलिसी होल्डर्स, एजेंट्स और कर्मचारियों की धड़कनें बढ़ गई हैं।

आज हम LIC की पैदाइश से लेकर उसके ब्रांड बनने की पूरी कहानी लेकर आए हैं। कैसे 5 करोड़ की सरकारी रकम से शुरू हुई एक कंपनी, सरकार को करीब 23 लाख करोड़ रुपए दे चुकी है? कैसे भारत में इंश्योरेंस का मतलब LIC बन गया? पिछले 65 साल में कैसे गांव-गांव तक LIC पहुंच गया?



कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की दस्तक हो चुकी है। शेयर बाजार में गिरावट का रुख है। Paytm और स्टार हेल्थ जैसी इंश्योरेंस कंपनियों के IPO पिट गए हैं। इसके बावजूद भारतीय जीवन बीमा निगम, यानी LIC, जनवरी से मार्च के बीच में देश का सबसे बड़ा IPO ला रही है। इससे LIC के पॉलिसी होल्डर्स, एजेंट्स और कर्मचारियों की धड़कनें बढ़ गई हैं।

आज हम LIC की पैदाइश से लेकर उसके ब्रांड बनने की पूरी कहानी लेकर आए हैं। कैसे 5 करोड़ की सरकारी रकम से शुरू हुई एक कंपनी, सरकार को करीब 23 लाख करोड़ रुपए दे चुकी है? कैसे भारत में इंश्योरेंस का मतलब LIC बन गया? पिछले 65 साल में कैसे गांव-गांव तक LIC पहुंच गया?

शुरुआत में भारतीयों का बीमा नहीं करती थी कंपनी

1818 में पहली बार भारत की धरती पर कोई बीमा कंपनी शुरू हुई थी। इसका नाम ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी था। ये सिर्फ अंग्रेजों का जीवन बीमा करती थी। बाबू मुत्तीलाल सील जैसे कुछ लोगों के प्रयासों से भारतीयों का भी बीमा होने लगा, लेकिन उनके लिए रेट अलग थे। 1870 में पहली भारतीय लाइफ इंश्योरेंस कंपनी शुरू हुई तो बराबरी का हक मिला। धीरे-धीरे भारत में जीवन बीमा कंपनियों की बाढ़ आ गई।

बेंगलुरु में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी की बिल्डिंग, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था।
बेंगलुरु में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी की बिल्डिंग, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था।
1956 में 245 कंपनियों को मिलाकर बनाई गई LIC

1956 तक भारत में 154 भारतीय इंश्योरेंस कंपनियां, 16 विदेशी कंपनियां और 75 प्रोविडेंट कंपनियां काम करती थीं। 1 सितंबर 1956 को सरकार ने इन सभी 245 कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके भारतीय जीवन बीमा निगम, यानी LIC, की शुरुआत की। सरकार ने उस वक्त इसे पांच करोड़ रुपए जारी किए थे। 1956 में LIC के 5 जोनल ऑफिस, 33 डिविजनल ऑफिस, 212 ब्रांच ऑफिस और एक कॉर्पोरेट ऑफिस था। कंपनी ने एक साल में ही 200 करोड़ का बिजनेस किया। इस भरोसे के पीछे एक बड़ी वजह सरकार की गारंटी थी।

1990 के उदारीकरण में भी बरकरार रहा दबदबा

1990 तक भारत में ज्यादातर कंपनियों पर सरकार का एकाधिकार था। 1991 के बाद धीरे-धीरे सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेच दिया गया, लेकिन सरकार ने LIC को नहीं छुआ। कई प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियां आने के बावजूद भारत के दो तिहाई बीमा बाजार पर LIC का कब्जा है। ये करीब 36 लाख करोड़ की संपत्ति का मैनेजमेंट करती है। LIC ने लोगों के बीच भरोसा बनाया है कि यहां लगाया उनका पैसा कभी डूबेगा नहीं।

जीवन बीमा मतलब LIC बनाने में ऐड्स का रोल

1970 के दशक में बाजार में LIC की मोनोपली थी। उस दौर के ऐड में दो हाथों के बीच एक लड़के की तस्वीर है। लिखा है कि उसे अपने प्रोटेक्शन की गर्माहट को महसूस होने दीजिए।

1980 के दशक में ऑडियो-विजुअल मीडियम आ चुके थे। कंपनी ने ऐसा संदेश दिया कि लाइफ इंश्योरेंस मतलब LIC। ये बात लोगों के जेहन में बैठ गई। उन दिनों दूरदर्शन पर आने वाले एक ऐड की टैगलाइन थी- रोटी, कपड़ा, मकान और जीवन बीमा।
1990 के आखिरी दिनों में LIC ने अपनी ब्रांड इमेज के लिए पुरजोर कोशिश की। 'न चिंता, न फिकर' और 'जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी' जैसी टैगलाइन वाले ऐड्स दिए।
20वीं सदी में LIC का एक ऐड है। बाजार में एक लड़की खो जाती है। उसके पिता उसे बेतहाशा खोज रहे हैं। अचानक किनारे की एक दुकान पर वो दिखती है। ऐड कहता है- जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। 70 के दशक वाला हाथ अब एक गर्मजोशी भरे गले लगने में बदल चुका है।
LIC सरकार के लिए साहूकार की तिजोरी की तरह

सरकार जब भी मुश्किल में फंसती है तो LIC का इस्तेमाल किसी साहूकार की तिजोरी की तरह होता है। 2015 में ONGC के IPO के वक्त LIC ने करीब 10 हजार करोड़ रुपए लगाए थे। 2019 में कर्ज से जूझ रहे IDBI बैंक को उबारने की बात आई तो LIC ने एक बार फिर अपनी झोली खोल दी।

LIC से 23 लाख करोड़ रुपए ले चुकी हैं सरकारें

2019 में जारी RBI के डेटा के मुताबिक, शुरुआत से लेकर अब तक LIC ने अब तक सरकारी क्षेत्र में 22.6 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है। इसमें से 10.7 लाख करोड़ रुपए तो 2014-15 से 2018-19 के बीच ही लगाए गए हैं।

इस वक्त ये 100% सरकारी कंपनी है, लेकिन जनवरी से मार्च 2022 के बीच सरकार कंपनी की 10% हिस्सेदारी शेयर बाजार में बेचने जा रही है। सरकार को LIC के IPO से 90 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा रकम जुटाने की उम्मीद है।

LIC के कर्मचारियों की क्या चिंताएं हैं?

LIC को बचाने की मांग लेकर प्रदर्शन करते कर्मचारी
LIC को बचाने की मांग लेकर प्रदर्शन करते कर्मचारी
सरकार के मंसूबों पर LIC के ही कर्मचारी सवाल उठा रहे हैं और IPO निकालने का विरोध कर रहे हैं। इन्हें अपनी नौकरी का डर सता रहा है। उनका कहना है कि LIC में सरकारी हिस्सेदारी में किसी भी तरह की छेड़छाड़ से बीमा धारकों का इस कंपनी पर से भरोसा हिला देगा। IPO की वजह से LIC पॉलिसी होल्डर्स की भी धड़कने बढ़ी हुई हैं। हालांकि उन पर सीधा कोई असर नहीं पड़ेगा। शेयर बाजार में लिस्टेड होने से कंपनी के कामकाज में और अधिक पारदर्शिता आएगी। सरकार ने कहा है कि वह LIC के IPO इश्यू साइज से 10% शेयर पॉलिसी होल्डर्स के लिए सुरक्षित रखेगी।

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